कौन है वो – ९

कौन है वो – ९

गतांक से आगे–

सारा दिन दीनानाथ जी और रमा जी मालती को समय समय पर सलाह देते, उसकी कुशल क्षेम पूछते और तरह तरह की ताकीद करते नहीं थक रहे थे।
दोनो के शरीर में गजब की चुस्ती फुर्ती नजर आ रही थी दोनो ही इस बात को लेकर अति प्रसन्न थे की उनकी वंश बेल आगे बढ़ रही है।
दोनो लोग बेताबी से रमेश के आने का इंतजार कर रहे थे।
मालती का मन आशाओं और निराशाओं के बीच झूल रहा था। कभी मन कहता अच्छा होगा तो कभी मन आशंकित हो उठता, ना जाने रमेश इस समाचार पर क्या प्रतिक्रिया दे।
शाम होने को आई थी और तीन जोड़ी निगाहें बड़ी बेताबी से घर के मुख्य द्वार पर टिकी हुई थी। शाम की चाय पीते पीते रमा जी ने ऐलान कर दिया की आज का खाना सिर्फ वो ही बनाएंगी। मालती के लाख कहने पर भी उन्होंने उसकी कोई भी मदद लेने से साफ इंकार कर दिया। वो आज बड़े चाव से अपने बेटे के लिए उसके मनपसंद का खाना बनाना चाहती थी, साथ ही बहु पर भी अपने स्नेह की वर्षा करने को आतुर थी, आखिर बरसों की उनकी चाहत जो पूरी होने वाली थी।
उनके घर में उनके पोते या पोती की किलकारियां जो गूंजने वाली थी, सच भी कहा है मूल से ज्यादा सूद होता है ना, ये कहावत आज चरितार्थ होती दिखाई दे रही थी।
रमा जी ने बड़े चाव से मटर पनीर की सब्जी, पूरी, रायता और खीर बनाकर रखी। आज वो रमेश की इंतजार खाने पर कर रही थी, दीनानाथ जी भी बेसब्री से अपने बेटे का इंतजार कर रहे थे।
करीब नौ बजे रमेश आखिर घर वापस लौट आया, रमा जी ने उसके घर में घुसते ही उसको हाथ मुंह धोने के लिए कहा और बोली तुम जल्दी से कपड़े बदल कर आओ बेटा आज मैने तुम्हारे लिए तुम्हारा मनपसंद खाना बनाया है, सब साथ मिल कर खायेंगे।
अच्छी बात ये भी थी की आज रमेश शराब पीकर नहीं आया था। जल्दी ही सब लोग खाने की मेज पर आ जुटे, रमा जी ने बहुत प्यार से सबको खाना परोसा। रमेश शायद किसी बात को लेकर खुश था उसने मुस्कुराते हुए रमा जी को पूछा, क्या बात है मां, आज तो तुमने मेरी मनपसंद की सभी चीज बनाई हैं, क्या कोई खास बात है।
दीनानाथ जी और रमा जी मुस्कुराने लगे, रमा जी बोली अरे तुम खाना तो खाओ, कितना समय गुजर गया साथ बैठ कर खाना ही नहीं खाया, तेरी शादी के बाद शायद..... कहते कहते वो रुक गई.... अचानक माहौल थोड़ा गंभीर हो गया।
रमेश भी खाना खाते खाते रुक गया, तब दीनानाथ जी बोले बेटा तू खाना खा ले। उसके बाद बात करते हैं।
आप दोनो मुझ से पहेलियां सी क्यों बुझा रहे हो, बताओ बात क्या है, मैं बहुत थक गया हूं नींद भी आ रही है, रमेश बोला।
अच्छा अच्छा पहले तू ये खीर तो खा, देख इसमें मैने तेरी पसंद से खूब सारे मेवे भी डालें हैं, रमा जी बोली।
नहीं, पहले मुझे बताओ ऐसी क्या बात है जो आप दोनो इतने खुश नजर आ रहे हो, रमेश बोला।
अच्छा, मैं बताती हूं, बहुत बड़ी खुशखबरी है, इस घर में एक नया मेहमान आने वाला है, रमा जी बोली।
ये कौन सी खुशखबरी है, मेहमान कौन आने वाला है?
अरे बुद्धू, इतना भी नही समझता, बहु का पैर भारी है, तू बाप बनने वाला है..... रमा जी बोली।
क्या बकवास कर रही हो मां, ऐसा कैसे हो सकता है, मेरा और इसका आज तक कोई रिश्ता नहीं है।
जरूर ये किसी और के साथ मुंह काला कर के आई होगी, रमेश गुस्से से भड़क कर बोला।
पता नहीं किस का पाप पेट में ले आई है.... मैने तो आज तक इसको कभी हाथ भी नहीं लगाया।
मेरा इस से कोई नाता नहीं है, वो बोला।
बता किस का पाप हमारे मत्थे मढ रही हो..... वो लगभग चीखते हुए बोला।
जी.... जी..... ये आपका ही बच्चा है........मालती हकलाते हुए बोली।
चुप, खबरदार जो अपनी पाप की औलाद को हमारे मत्थे मढ़ने की कोशिश भी की.... रमेश की आंखों से शोले बरस रहे थे।
रमा जी और दीनानाथ जी हतप्रभ उन दोनो की बातें सुन रहे थे।
रमेश दांत पीसता हुआ बोला, गलती की जो तुझे आज तक इस घर में रहने दिया, तुझे तो पहले ही दिन घर से बाहर निकल देना चाहिए था। धोखेबाज हो तुम, पहले शादी में धोखा दिया और अब किसी की नाजायज औलाद को इस घर का बच्चा बता कर हमारे मत्थे मढ़ना चाहती हो.......
खैर जो तब नहीं किया आज कर दूंगा, तुझे अभी धक्के मार के घर से बाहर निकाल देता हूं, ना रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी.......
इतना कहते ही वो झपट कर मालती की ओर बढ़ा और उसे झटके से खड़ा कर के दरवाजे की ओर घसीट कर ले जाने लगा।
दीनानाथ जी जो अब तक मूर्तिवत सारा माजरा देख रहे थे, जल्दी से खड़े हुए और झपट कर रमेश को रोकने की कोशिश करने लगे....
पर रमेश के सर पर तो मानो जुनून चढ़ा हुआ था, उसने दीनानाथ जी को जोर का धक्का देकर मालती को दरवाजे की तरफ घसीटना जारी रखा।
अचानक लगे धक्के से दीनानाथ जी संभल ना सके और उनका सर सामने रखी मेज़ के कोने से टकरा गया और उनके सर से खून का फव्वारा छूट गया, वो भरभरा कर जमीन पर धराशाई हो गए। ये देख कर रमा जी चीख कर अपने पति की तरफ बढ़ी।
उनकी हृदय विदारक चीख सुन कर रमेश भी चौंक पड़ा और मालती को छोड़ कर अपने पिता की तरफ भागा। दीनानाथ जी के सर से खून का एक परनाला सा बह रहा था, देखते देखते दीनानाथ जी के ऊपर बेहोशी सी तारी होने लगी, इससे पहले कोई कुछ कर पाता उनके प्राण पखेरू उड़ गए। उनकी थमती नब्ज़ को देख कर रमेश उनके पास ही धम्म से बैठ गया और उसके पास ही रमा जी भी मूर्तिमान होकर बैठी थी।
बहुत देर बाद मालती खुद को संभाल कर अपने सास ससुर के पास आई। उसने रमा जी को जैसे ही हाथ लगाया उनका शरीर भी निस्तेज एक तरफ लुढ़क गया।
उस रात दो लोग एक साथ अनाथ हो गए।
एक बार फिर मालती के सर से मां बाप का साया उठ गया और साथ ही साथ उसका घर भी उससे छिन गया।
बहुत देर तक दोनो दीनानाथ जी और रमा जी की निष्प्राण देह के पास बैठ कर चुपचाप आंसू बहाते रहे।
बहुत देर बाद जब मालती के आंखों से आंसू सूख चले तो उसने उठ कर अपने स्वर्गीय सास ससुर के पैर छुए और घर का दरवाजा खोल कर बाहर निकल आईं।
किस्मत की एक नई ठोकर ने आज फिर उसे दर बदर की ठोकर खाने पर मजबूर कर दिया था।
रात के अंधेरे में वो बदहवास सी बढ़ी चली जा रही थी, उसे न तो अपने तन की फिकर थी ना ही इस बात का ज्ञान की उसे जाना कहां है। बस उसके मन में एक ही चिंता थी की उसके अंदर पल रही नन्ही सी जान का क्या होगा.......

क्रमश:

आभार – नवीन पहल – १४.०७.२०२२ 🌹🌹🌹❤️

# नॉन स्टॉप 2022 

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9 Comments

Saba Rahman

16-Jul-2022 11:17 PM

Osm

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Chudhary

16-Jul-2022 10:08 PM

Nice

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Rahman

16-Jul-2022 10:01 PM

Mst

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